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JAC 12th History Model Paper Answer 2025 [PDF Download]

JAC 12th History Model Paper Answer 2025: Jharkhand Academic Council (JAC) has released the class 12th History model paper 2025. JAC class 12th History model paper 2025 contains the format of questions coming in the board exam 2025, which makes it easier for the students to prepare for the exam. Therefore, our team has prepared the answer of JAC class 12th History model paper 2025 which is based on the question bank released by JAC. You can download JAC class 12th History model paper answer 2025 PDF in jacupdate.in website. JAC class 12th History model paper answer 2025 PDF download link is given below, which you can easily download.

JAC 12th History Model Paper Answer

Post JAC 12th History Model Paper Answer 2025
Board Jharkhand Academic Council
Name Of Exam Jharkhand 12th Board Examination 2025
Session 2025
Date Of Exam 11 February 2025
Model Paper Publication Date 03 January 2025
Subject History (Class 12th)
Official Website J.A.C.

खंड-A  बहुविकल्पीय प्रश्न

1. भारतीय पुरातत्व का पिता किसे कहा जाता है ?
a) अलेक्जेंडर कनिंघम
b) दयाराम साहनी
c) राखाल दास बनर्जी
d) एस आर राव
उत्तर:- a) अलेक्जेंडर कनिंघम

2. बौद्ध और जैन ग्रंथ में कितने महाजनपद का उल्लेख है ?
a) 10
b) 12
c) 14
d) 16
उत्तर:- d) 16

3. अपने स्वयं के खर्चे से सुदर्शन झील की मरम्मत किसने कराई ?
a) अशोक
b) रुद्रदामन
c) कनिष्क
d) स्कंद गुप्त
उत्तर:- b) रुद्रदामन

4. मानव के सम्पूर्ण जीवन को कितने भागों में बांटा गया ?
a) 5
b) 4
c) 3
d) 9
उत्तर:- b) 4

5. गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश किस स्थान पर दिया था ?
a) कुशीनगर
b) सारनाथ
c) लुंबिनी
d) गया
उत्तर:- b) सारनाथ

6. ईब्नबतूता ने किस पुस्तक की रचना की थी
a) किताब उल हिंद
b) रिहला
c) आईने अकबरी
d) अकबरनामा
उत्तर:- b) रिहला

7. पद्मावत किसकी रचना है?
a) कबीर
b) तुलसीदास
c) अमीर खुसरो
d) मलिक मोहम्मद जायसी
उत्तर:- d) मलिक मोहम्मद जायसी

8. तालिकोटा का युद्ध कब हुआ ?
a) 1526 ई
b) 1556 ई
c) 1565 ई
d) 1575 ई
उत्तर:- c) 1565 ई

9. विजयनगर का किस राज्य के साथ हमेशा संघर्ष चलता रहा ?
a) कालीकट से
b) चोलो से
c) पाण्ड्य से
d) बहमनी से
उत्तर:- d) बहमनी से

10. मुगलकालीन ऐतिहासिक स्रोतों में शामिल थी ?
a) ऐतिहासिक ग्रंथ
b) सरकारी तथा गैर सरकारी दस्तावेज़
c) उस कालांश में बनी इमारतें एवं स्मारक
d) इनमें से सभी
उत्तर:- d) इनमें से सभी

11. अकबर ने तीर्थ यात्रा कर को कब समाप्त किया था ?
a) 1562
b) 1563
c) 1564
d) 1565
उत्तर:- b) 1563

12. संथाल विद्रोह कब हुआ था ?
a) 1857
b) 1858
c) 1855
d) 1860
उत्तर:- c) 1855

13. 1857 के विद्रोह में बिहार का नेतृत्व किसने किया था ?
a) नाना साहिब
b) वीर कुंवर सिंह
c) रानी लक्ष्मीबाई
d) दिलीप सिंह
उत्तर:- b) वीर कुंवर सिंह

14. सहायक संधि की व्यवस्था किसने की ?
a) लॉर्ड क्लाइव
b) वारेन हेस्टिंग
c) लॉर्ड हेस्टिंग
d) लॉर्ड वेलेजली
उत्तर:- d) लॉर्ड वेलेजली

15. संविधान सभा की संचालन समिति के अध्यक्ष कौन थे ?
a) राजेंद्र प्रसाद
b) जवाहर लाल नेहरू
c) भीम राव अंबेडकर
d) सरदार पटेल
उत्तर:- a) राजेंद्र प्रसाद

16. कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना कब की गई थी ?
a) 1771 ई
b) 1772 ई
c) 1773 ई
d) 1770 ई
उत्तर:- c) 1773 ई

17. सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ किसने किया ?
a) गांधी जी
b) जवाहर लाल नेहरू
c) अबुल कलाम आजाद
d) सुभाष चंद्र बोस
उत्तर:- a) गांधी जी

18. कैबिनेट मिशन भारत कब आया ?
a) मार्च 1946
b) अप्रैल 1945
c) जून 1942
d) मई 1945
उत्तर:- a) मार्च 1946

19. मुस्लिम लीग की स्थापना कब और कहाँ की गई?
a) 1905 लखनऊ
b) 1906 ढाका
c) 1907 सूरत
d) 1909 कलकत्ता
उत्तर:- b) 1906 ढाका

20. भारत में कितनी रियासतें थी ?
a) 562
b) 563
c) 564
d) 654
उत्तर:- a) 562

21. गुरु नानक का जन्म कब हुआ ?
a) 1469 ई
b) 1478 ई
c) 1479 ई
d) 1468 ई
उत्तर:- a) 1469 ई

22. किस यात्री को मध्यकालीन यात्रियों का सरताज कहा जाता है?
a) टेवनियर
b) इब्नबतूता
c) मार्को पोलो
d) अलबरूनी
उत्तर:- c) मार्को पोलो

23. पुराणों की संख्या कितनी है?
a) 16
b) 18
c) 19
d) 12
उत्तर:- b) 18

24. महाभारत के फारसी अनुवाद का नाम क्या है?
a) रज्म्नामा
b) महाभारत
c) ग्रंथनामा
d) इनमे से कोई नहीं
उत्तर:-  a) रज्म्नामा

25. हड़प्पा किस नदी के किनारे स्थित है ?
a) रावी
b) सिंधु
c) भोगवा
d) सरस्वती
उत्तर:- a) रावी

26. पीर का अर्थ है-
a) ईश्वर
b) गुरु
c) उलमा
d) मौलवी
उत्तर:- b) गुरु

27. बारबोसा कहाँ के यात्री थे ?
a) इटली
b) पुर्तगाल
c) रूस
d) फ्रांस
उत्तर:- b) पुर्तगाल

28. पांचवी रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में कब पेश की गई थी ?
a) 1800
b) 1812
c) 1813
d) 1850
उत्तर:- c) 1813

29. हड़प नीति किसने लागू की थी ?
a) लॉर्ड डलहौजी
b) लॉर्ड क्लाइव
c) लॉर्ड कर्जन
d) वारेन हेस्टिंग
उत्तर:- a) लॉर्ड डलहौजी

30. कोर्ट सेंट जॉर्ज की स्थापना कहां की गई थी ?
a) कलकत्ता
b) मद्रास
c) बॉम्बे
d) दिल्ली
उत्तर:- b) मद्रास

खंड-B  अति लघु उत्तरीय प्रश्न

31. हड़प्पा सभ्यता कहां कहां विकसित हुई थी ?
उत्तर:- हड़प्पा सभ्यता पाकिस्तान, दक्षिण अफगानिस्तान, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश में विकसित हुई थी।

32. शक संवत का आरंभ किसने किया ?
उत्तर:-  शक संवत का आरंभ कनिष्क ने किया था।

33. नाट्यशास्त्र के लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर:- भरतमुनि।

34. सांची के स्तूप की खोज किसने की ?
उत्तर:- सांची के स्तूप की खोज 1818 ई. में जनरल टेलर ने की थी।

35. “ट्रवल्स इन द मुग़ल एंपायर” पुस्तक की रचना किसने की?
उत्तर:- ट्रैवल्स इन द मुगल एंपायर पुस्तक की रचना फ्रांसिस बर्नियर ने की है।

36. सर्वप्रथम भक्ति आंदोलन को शुरू करने वाले कोन थे ?
उत्तर:- सर्वप्रथम भक्ति आंदोलन को शुरू करने वाले अलवार और नयनार संत थे।

37. बहमनी राजाओं की राजधानी कहां थी ?
उत्तर:- बहमनी राज्य की राजधानी 1347 और 1425 के बीच हसनाबाद थी, जिसे अब गुलबर्गा के नाम से जाना जाता है।

38. भारत के अंतिम वाइसरॉय कौन थे ?
उत्तर:- भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन थे।

खंड-C लघु उत्तरीय प्रश्न

39. स्थायी बंदोबस्त से आप क्या समझते हैं ? इसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखें ?
उत्तर:- स्थायी बंदोबस्त अथवा इस्तमरारी बंदोबस्त ईस्ट इण्डिया कंपनी और बंगाल के जमींदारों के बीच कर वसूलने से सम्बंधित एक स्थाई व्यवस्था हेतु समझौता था जिर्स बंगाल में लार्ड कार्नवालिस द्वारा 1793 को लागू किया गया।
स्थायी बंदोबस्त की विशेषताएँ।

  • स्थायी बंदोबस्त बंगाल के राजाओं तथा तालुक्केदारों के साथ किया गया।
  • इसके द्वारा उन्हें भूमि का स्वामी बना दिया एवं भूमि अधिकार स्वीकार कर लिया गया।
  • जमींदारों द्वारा सरकार को दिया जाने वाला वार्षिक लगान स्थायी रूप से निश्चित कर दिया गया।
  • जमींदार ग्राम में भू-स्वामी नहीं अपितु राजस्व संग्राहक भी था। उन्हें आदेश दिया गया कि किसानों से लगान उनका मूल रूप से वसूल की गई धनराशि का केवल 1/11 भाग अपने पास रखे और 10/11 भाग सरकार को दे।
  • जमींदार भूमि को विक्रय कर सकते थे अथवा गिरवी रख सकते थे।
  • जमींदार द्वारा लगान की निर्धारित धनराशि का भुगतान न किए जाने पर सरकार उसकी भूमि का कुछ भाग विक्रय कर लगान की वसूली कर सकती थौ

40. खिलाफत आंदोलन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:- खिलाफ़त आंदोलन (1919-1920) मुहम्मद अली और शौकत अली के नेतृत्व में भारतीय मुसलमानों का एक आंदोलन था।
तुर्की के सुल्तान को मुस्लिम संसार के खलीफा अर्थात् धार्मिक प्रमुख का पद प्राप्त था। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटेन ने यह घोषणा की कि युद्ध के बाद तुर्की का विभाजन तथा खलीफा के पद को समाप्त कर दिया जाएगा। ब्रिटेन की इस घोषणा से भारतीय मुसलमानों को ठेस पहुँचा। अतः उन्होंने ब्रिटेन के खिलाफ आंदोलन चलाने का निश्चय किया जो खिलाफत आंदोलन के रूप में सामने आया। चूँकि यह खलीफा पद के संरक्षण के पक्ष में किया गया आंदोलन था। अतः इसे खिलाफत आंदोलन कहा गया। कांग्रेस ने इस आंदोलन का समर्थन किया और गाँधी जी ने इसे असहयोग आंदोलन के साथ विलय करा लिया।

41. अभिलेख से आप क्या समझते हैं ? इनका क्या महत्व है ?
उत्तर:- अभिलेख उन्हें कहते हैं जो पत्थर, धातु या मिट्टी के बर्तन जैसी कठोर सतह पर खुदे होते हैं। अभिलेखों में इनके निर्माण की तिथि भी खुदी होती है तथा जिन पर तिथि नहीं होती उनका काल निर्धारण लेखन शैली के आधार पर किया जाता है। भारत में प्राचीनतम अभिलेख प्राकृत भाषा में है जिसे सम्राट अशोक ने बनवाया है।
महत्व:-
1. अभिलेख प्राचीन काल के अध्ययन के लिए अत्यंत प्रमाणिक और विश्वसनीय स्रोत होते हैं क्योंकि ये समकालीन होते हैं।
2. अभिलेख बनवाने वाले के अभिलेखों से शासक के विचार, राज्य विस्तार, उपलब्धियाँ, चरित्र, जन भावना का पता चलता है।
3. अभिलेखों से तत्कालिन धर्म-संस्कृति, रीति-रिवाजों की जानकारी मिलती है।
4. अभिलेखों से तात्कालिन भाषा और लिपि का ज्ञान होता है।
5. शासकों के आदेश, शत्रु-विजय तथा नागरिक अधिकारों की जानकारी मिलती है।
6. अभिलेखों से उस काल के समय का ज्ञान होता है।
7. अभिलेख प्राचीन इतिहास के स्थाई प्रमाण होते है।
8. अभिलेख से तात्कालिन अर्थव्यवस्था की भी जानकारी मिलती है।
9. अभिलेख से शासक और प्रजा के बीच का संबंध भी पता चलता है।
10. अभिलेख से कला का भी ज्ञान होता है।

42. कृषि उत्पादन में महिलाओं की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:- मध्यकालीन भारतीय कृषि समाज में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी। खेतिहर परिवारों से संबंधित महिलाएं कृषि उत्पादन में सक्रिय सहयोग प्रदान करती थी तथा पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर खेतों में काम करती थी। पुरुष खेतों की जुताई और हल चलाने का काम करते थे जबकि महिलाएं मुख्य रूप से बुआई, निराई तथा कटाई का काम करती थी। पकी हुई फसल का दाना निकालने में भी सहयोग प्रदान करती थी। वास्तव में मध्यकाल विशेष रुप से 16वीं और 17वीं शताब्दी में ग्रामीण इकाइयां एवं व्यक्तिगत खेती का विकास होने के कारण घर परिवार के संसाधन तथा श्रम उत्पादन का प्रमुख आधार बन गया। अतः महिलाएं और पुरुषों के कार्य क्षेत्र में एक विभाजक रेखा खींचना कठिन हो गया था। उत्पादन के कुछ पहलू जैसे सूत कातना, बर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करना और गूंथना, कपड़ों पर कढ़ाई करना आदि मुख्य रूप से महिलाओं के श्रम पर ही आधारित थी। किसान और दस्तकार महिलाएं न केवल खेती के काम में सहयोग प्रदान करती थी अपितु आवश्यक होने पर नियोक्ताओं के घरों में भी काम करती थी और अपने उत्पादन के बेचने के लिए बाजारों में भी जाती थी। उल्लेखनीय है कि श्रम प्रधान समाज में महिलाओं को श्रम का एक महत्वपूर्ण संसाधन समझा जाता था क्योंकि उनमें बच्चे उत्पन्न करने की क्षमता थी। किंतु हमें यह याद रखना चाहिए कि महिलाओं की जैव वैज्ञानिक क्रियाओं से संबंधित पूर्वाग्रह अब भी विद्यमान थे। उदाहरण के लिए पश्चिमी भारत में राजस्वला महिलाएं हल अथवा कुम्हार के चाक को नही पकड़ सकती थी। इसी प्रकार बंगाल में महिलाओं को मासिक धर्म की अवधि में पान बागानो में जाने की मनाही थी।

43. संविधान सभा की प्रमुख समितियों का वर्णन करें।
उत्तर:- संविधान के निर्माण का कार्य करने के लिए अनेक समितियां बनाई गई जिनमें प्रमुख थी:-
1. डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में संचालन समिति।
2. पं. जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में संघ संविधान समिति ।
3. सरदार वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में प्रांतीय संविधान समिति।
4. जे. बी. कृपलानी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय ध्वज समिति।
5. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में 7 सदस्यों की प्रारूप समिति।

44. किताब उल हिंद पर एक लेख लिखें।
उत्तर:- “किताब-उल-हिन्द” पुस्तक की रचना अलबरूनी ने सुल्तान महमूद गजनवी के शासकाल की थी। अलबरूनी ने इस पुस्तक की रचना अरबी भाषा में की थी। यह पुस्तक 80 अध्यायो और अनेक उप अध्यायों में विभक्त है। इस पुस्तक से महमूद गजनवी के आक्रमण के समय के भारतीय समाज एवं संस्कृति की महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। अलबरूनी अपनी पुस्तक में भारतीय समाज रहन सहन, खान पान, वेश-भूषा सामाजिक प्रथाओं, त्योहार धर्म, दर्शन कानून, अपराध, दंड, ज्ञान विज्ञान, खगोलशास्त्र, गणित, चिकित्सा, रसायन दर्शन आदि का वर्णन करते हैं। वे भारत में प्रचलित विभिन्न संवतो, यहाँ की भौगोलिक स्थिति, महत्वपूर्ण नगरों और उनकी दूरी का भी उल्लेख करते है। चूँकि यह पुस्तक महमूद गजनवी के शासनकाल में लिखी गई, परंतु इसमें महमूद गजनवी के क्रियाकलापो का यदा-कदा ही उल्लेख मिलता है इस पुस्तक से तत्कालीन राजनीतिक इतिहास के अध्ययन में बहुत अधिक सहायता नहीं मिलती है, परंतु भारतीय समाज और संस्कृति के अध्ययन के लिए किताब – उल- हिन्द अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक है।

45. महाभारत के महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:- महाभारत भारतीय संस्कृति तथा हिन्दू धर्म के विकास का लेखा-जोखा है। यह एक बहुआयामी ग्रंथ है। इसमें समाज के सभी अंग जैसे राजनीति, धर्म, दर्शन तथा आदर्श की झलक मिलती है। इसमें युद्ध व शांति, सदगुण व दुर्गुण की व्याख्या की गई है। भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण स्त्रोत है। रूपक कथाएँ संभवतः काल्पनिक है। निश्चित रूप से सामाजिक मूल्यों के अध्ययन के लिए महाभारत एक अच्छा स्रोत है। इस प्रकार महाभारत की महत्ता को समझा जा सकता है।

46. आम लोग विभाजन की किस तरह देखते थे ?
उत्तर:- आम लोग विभाजन को भिन्न-भिन्न नजरों से देख रहे थे।
जैसे-
1. कुछ लोगों को लगता था कि शांति के स्थापित होते ही, वे अपने-अपने घरों को लौट जाएँगे। वे इसे कोई स्थायी प्रक्रिया नहीं मान रहे थे।
2. विभाजन के दंगों से बचे कुछ लोग इसे मारा- मारी, मार्शल लॉ, रौला, हुल्लड़ आदि शब्दों से संबोधित कर रहे थे।
3. कुछ लोग इसे एक प्रकार का गृहयुद्ध मान रहे थे।
4. कुछ ऐसे भी लोग थे जो स्वयं को उजड़ा हुआ और असहाय अनुभव कर रहे थे। उनके लिए यह विभाजन उनसे बचपन की यादें छीनने वाला तथा मित्रों तथा रिश्तेदारों से तोड़ने वाला मान रहे थे।

खंड-D दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

किन्हीं चार प्रश्नों का उत्तर दें:

47. इब्नबतूता द्वारा वर्णित डाक व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:- इब्नबतूता भारत की संचार व्यवस्था से अत्यधिक प्रभावित था और उसने इसका उल्लेख संचार की एक अनोखी प्रणाली के रूप में किया है उसने अपने यात्रा वृतांत में बताया की भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था थी।
. अश्व डाक व्यवस्था ख. पैदल डाक व्यवस्था क. अश्व डाक व्यवस्था अश्व डाक व्यवस्था को उलूक कहा जाता था। जो हर चार मील की दूरी पर स्थापित राजकीय घोडो द्वारा संचालित होता था।
ख. पैदल डाक व्यवस्था पैदल डाक व्यवस्था में प्रति मील तीन पड़ाव होते थे जिसे दावा कहा जाता था। यह एक मील का तीन तिहाई होता था। हर तीन मील पर घनी आबादी वाला एक गांव होता था जिनमें लोग कार्य प्रारंभ करने के लिए तैयार बैठते थे इनमें से प्रत्येक के पास दो हाथ लम्बी एक छड़ी होती थी जब संदेशवाहक शहर से यात्रा प्रारंभ करता तो एक हाथ में पत्र और दूसरे हाथ में घंटियां वाली छड़ी लिए वह अपनी क्षमतानुसार तेज से भागता था और मंडप में बैठे लोग घंटियों की आवाज सुन कर तैयार हो जाते थे और जैसे ही संदेश वाहक उनके पास पहुँचता उनमें से एक उससे पत्र ले लेता और वह छड़ी हिलाते हुए पूरी ताकत से दौड़ता था जब तक कि वह अगले दावा तक पहुंच नहीं जाता और जब तक पत्र अपने गंतव्य स्थान तक नहीं पहुंच जाता तब तक यह प्रक्रिया चलती रहती थी।

निस्संदेह संचार की इस अनूठी प्रणाली ने व्यापार, वाणिज्य, संबंधी गतिविधियों को काफी प्रोत्साहित किया। इस व्यवस्था की कुशलता का अनुमान हम इससे लगा सकते हैं इसके द्वारा गुप्तचरो की खबरें सिंध से दिल्ली तक केवल 5 दिनों में पहुंच जाती थी। जबकि सिंध से दिल्ली की यात्रा में लगभग 50 दिनों का समय लगता था। इस प्रकार हम देखते हैं कि तत्कालीन डाक एवं संचार व्यवस्था से शासक वर्ग से लेकर के सामान्य जनता को काफी लाभ पहुंचा।

48. अकबर की धार्मिक नीति का वर्णन करें।
उत्तर:- अकबर ने अपने साम्राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनायी। 1562 ई. में अकबर ने युद्ध बन्दियों को दास बनाने की प्रथा पर रोक लगायी। 1563 ई. में अकबर ने तीर्थ यात्रा कर को समाप्त किया। धार्मिक प्रश्नों पर वाद-विवाद करने के लिये अकबर ने फतेहपुर सीकरी में 1575 ई. में इबादतखाना का निर्माण कराया। 1579 ई. में अकबर ने महजर की घोषणा की। इसके द्वारा किसी भी विवाद पर अकबर की राय ही अन्तिम राय होगी।

अकबर ने अपना ज्ञान बढ़ाने के लिये विभिन्न धर्मों के विद्वानों से उनके धर्म की जानकारी ली-
1. हिन्दू धर्म के पुरुषोत्तम एवं देवी से हिन्दू धर्म की जानकारी प्राप्त की। हिन्दू धर्म से प्रभावित होकर वह माथे पर तिलक लगाने लगा। उसने हिन्दू धर्म की पुस्तकों का अनुवाद करवाया।
2. पारसी धर्म के दस्तूर मेहर जी राणा से पारसी धर्म की जानकारी ली। इससे प्रभावित होकर उसने सूर्य की उपासना आरम्भ की। दरबार में हर समय अग्नि जलाने की आज्ञा दी।
3. अकबर ने जैन धर्म की शिक्षा आचार्य शांतिचन्द एवं हीर विजय सूरी से ली।
4. सिख धर्म से प्रभावित होकर पंजाब का एक वर्ष का कर माफ कर दिया।
5. ईसाई धर्म से प्रभावित होकर आगरा एवं लाहौर में गिरजाघर का निर्माण कराया।

इस प्रकार सत्य की खोज करते-करते उन्होंने पाया कि सभी धर्मों में अच्छाइयाँ हैं मगर कोई भी धर्म सम्पूर्ण नहीं है। अतः उसने 1581 ई में स्वयं का एक धर्म दीन-ए-इलाही चलाया। इस धर्म के द्वारा वह हिन्दू व मुस्लिम धर्म को मिलाकर साम्राज्य में राजनीतिक एकता कायम करना चाहता था। उस धर्म को स्वीकार करने वाला एकमात्र हिन्दू बीरबल था। 1564 ई. में अकबर ने जजिया कर बन्द कर दिया था। यह समस्त भारत की गैर-मुस्लिम जनता से वसूला जाता था। अकबर ने सुलह-ए-कुल की नीति अपनायी। इस नीति के द्वारा अकबर ने अपने साम्राज्य में शांति एवं एकता स्थापित करने का प्रयास किया। अबुल फजल सुलह ए-कूल के आदर्श को प्रबुद्ध शासन की आधारशिला मानता था। सभी अधिकारियों को प्रशासन में सुलह-ए-कुल की नीति अपनाने के निर्देश दिये गये।

49. मगध साम्राज्य के शक्तिशाली होने के क्या कारण थे ?
उत्तर:- छठी शताब्दी ई० पूर्व से चौथी शताब्दी ई.पूर्व तक एक प्रमुख शक्ति के रूप मे मगध महाजनपद के शक्तिशाली होने के निम्नलिखित कारण थेः
1. भौगोलिक स्थिति : मगध की दोनो राजधानियों राजगृह और पाटलिपुत्र सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित थी। राजगीर पाँच पहाड़ियों से घिरा एक दुर्ग के समान था वही पाटलिपुत्र गंगा, गंडक और सोन नदियों तथा पुनपुन नदी से घिरे होने के कारण एक जलदुर्ग के समान था।
2. लोहे के समृद्ध भंडार : मगध के दक्षिणी क्षेत्र आधुनिक झारखंड में लोहे के भंडार होने के कारण लोहे के हथियार एवं उपकरण आसानी से उपलब्ध थे।
3. उपजाऊ कृषिः मगध का क्षेत्र कृषि की दृष्टि से काफी उर्वर था। यहां के लोग अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर थे।
4. जलमार्ग से यातयात के साधनः गंगा तथा उसकी सहायक नदियों के समीप होने के कारण जलमार्ग से यात्रा सस्ता एवं आसान था।
5. हाथी की उपलब्धताः इस क्षेत्र के घने जंगलो में हाथी काफी संख्या में पाये जाते थे जिनका युद्ध में काफी महत्व था। हाथी से दलदल स्थान तथा दुर्गों को तोड़ने में काफी सहायता मिलती थी।
6. योग्य शासक : मगध के आरंभिक शासक बिंबिसार, अज्ञातशत्रु और महापद्मनंद आदि अत्यधिक योग्य एवं महत्वाकांक्षी थे। इनकी नीतियों ने मगध का विस्तार किया।

50. मोहनजोदडो की कुछ विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:- मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त के लरकाना जिले में स्थित था। सिंधी भाषा में मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ है ‘मृतकों का टीला’।
मोहनजोदड़ो की खुदाई से निम्नलिखित विशेषताएं प्रकट हुई है जो निम्नलिखित हैं-
1. सुनियोजित नगर-
A. मोहनजोदड़ो एक विशाल शहर था जो 125 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था। यह शहर दो भागों में विभक्त था। शहर के पश्चिम में एक दुर्ग था जो ऊंचाई में स्थित था, एवं पूर्व में नीचे एक नगर बसा हुआ था।
B. दुर्ग की संरचना कच्ची ईंटों के चबूतरे पर बनाई गई थी, इसमें बड़े-बड़े भवन थे जो संभवत प्रशासनिक अथवा धार्मिक केंद्रों के रूप में कार्य करते थे।
C. दुर्ग के चारों ओर ईटों की बनी दीवार थी जो दुर्ग को निचले शहर से विभाजित करती थी।
D. निचले शहर का क्षेत्र दुर्ग की अपेक्षा कहीं अधिक बड़ा था जिसमें सामान्य जनता निवास करतीथी। निचले शहर को भी दीवार से चारों और से घेरा गया था।
E. प्राय सभी बड़े मकानों में रसोईघर, स्रानागार, शौचालय और कुँए होते थे।
F. घर की दरवाजे और खिड़कियां प्रायः सड़क की ओर नहीं खुलती थी। उस समय के घरों में गोपनीयता का विशेष ध्यान रखा जाता था। 2. सुव्यवस्थित सड़के एवं नालियाँ –
A. सड़कें पूरब से पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण की तरफ बनी होती थी और एक दूसरे को समकोण पर काटती थी एवं शहर को आयताकार भागों में विभाजित करती थी।
B. नालियाँ पकी ईटों से बनी तथा ढकी हुई होती थी. उनमे थोड़ी-थोड़ी दूरी पर हटाने वाले पत्थर लगे होते थे ताकि नालियों की सफाई की जा सके।
3. विशाल स्रानागार, अन्नागार एवं भवन –
A. मोहनजोदड़ो का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सार्वजनिक भवन विशाल स्रानागार है। इसका जलाशय दुर्ग के टीले में स्थित था। इसकी संरचना अनोखी है तथा धार्मिक संबंधी अनुष्ठानों में इसका प्रयोग किया जाता था।
B. मोहन‌जोदड़ो की अन्य महत्वपूर्ण विशेषता दुर्ग में मिलने वाला विशाल अन्नागार है। विशाल अन्नागार के दक्षिण में ईटों के चबूतरे की कई कतारें थी।
C. मोहनजोदड़ो की दुर्ग क्षेत्र में विशाल स्रानागार की तरफ एक अन्य लंबा भवन मिले है। विद्वानों के अनुसार यह भवन किसी उच्च अधिकारी का निवास स्थान रहा होगा।
4. कुशल एवं व्यवस्थित नागरिक प्रबंध-
मोहनजोदड़ो का नागरिक प्रबंध अत्यधिक कुशल एवं व्यवस्थित था। परंतु यह कहना कठिन है कि सिंधु घाटी सभ्यता के शासक कौन थे। संभव है कि वे राजा थे या पुरोहित अथवा व्यापारी। संभव है कि नगरपालिका का शासन प्रबंध था। किंतु इतना निश्चित है कि मोहनजोदड़ो का नागरिक प्रबंध कुशल हाथों में था। उनका प्रशासन अत्यधिक कुशल एवं उत्तरदाई था।

51. 1857 के विद्रोह की विफलता के कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर:-1857 के विद्रोह में विद्रोहियों को आरंभिक सफलता तो मिली, परंतु शीघ्र ही वे पराजित होने लगे। दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, झाँसी, कालपी और अन्य स्थानों पर अँगरेजों ने कब्जा जमा लिया। दिसंबर 1858 तक विद्रोह को पूरी तरह दबा दिया गया। इस तरह विद्रोह असफल हो गया जिसके कारण इस प्रकार है-

  • (i) योग्य नेतृत्व का अभाव विद्रोह मुगल बादशाह बहादुरशाह के नेतृत्व में हुआ, परंतु उसमें नेतृत्व करने की क्षमता नहीं थी। विद्रोह के अन्य नेताओं में भी आपसी तालमेल नहीं था, वे एक साथ योजना बनाकर युद्ध नहीं करते थे तथा उनमें कुशल सेनापति के गुणों का अभाव था। अतः वे अँगरेज सेनापतियों का सामना नहीं कर सके।
  • (ii) समय से पूर्व विद्रोह आरंभ बिना किसी निश्चित योजना के निर्धारित समय के पूर्व ही विद्रोह शुरू हो गया। इससे विद्रोह योजनाबद्ध रूप से नहीं हो सका। एक अंग्रेज इतिहासकार ने लिखा कि “यदि पूर्व निश्चय के अनुसार एक तारीख को सारे भारत मैं स्वाधीनता का युद्ध शुरू होता तो भारत में एक भी अंग्रेज जीवित न बचता।”
  • (iii) विद्रोह का अनुपयुक्त समय विद्रोह का समय क्रांतिकारियों के लिए अनुपयुक्त था। उस समय तक लगभग पूरा भारत अँगरेजी सत्ता के अधीन हो चुका था। अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति भी अँगरेजों के अनुकूल थी। अतः अंग्रेजों ने अपनी सारी शक्ति विद्रोह के दमन में लगा दी।
  • (iv) विद्रोह का निश्चित उद्देश्य नहीं विद्रोह में भाग लेनेवाले नायकों का एकसमान उद्देश्य नहीं था। अपने व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति के लिए वे इसमें भाग ले रहे थे। यह निश्चित नहीं किया गया था कि क्रांति की सफलता के बाद क्या व्यवस्था होगी। अतः विद्रोही पूरे मनोयोग से विद्रोह में भाग नहीं ले सके।
  • (v) संगठन एवं योजना का अभाव विद्रोहियों में संगठनात्मक दुर्बलता थी। विभिन्न क्षेत्रों के क्रांतिकारी एवं उनके नेता अपनी-अपनी योजनानुसार अलग- अलग कार्य करते रहे। इसके विपरीत अँगरेजों ने योजनाबद्ध रूप से विद्रोह का दमन किया।
  • (vi) विद्रोहियों के सीमित साधन अँगरेजों की तुलना में विद्रोहियों के साधन अत्यंत सीमित थे। उनके पास पर्याप्त धन, रसद, गोला-बारूद और प्रशिक्षित सैनिकों का सर्वथा अभाव था। उनके पास आवागमन के साधनों एवं गुप्तचर व्यवस्था का भी अभाव था।
  • (vii) विद्रोह का सीमित स्वरूप विद्रोह के स्थानीय एवं सीमित स्वरूप ने भी इसकी विफलता में योगदान दिया। क्रांति का केंद्रबिंदु उत्तरी और मध्य भारत के कुछ भाग ही थे। बंगाल, पूर्वोत्तर भारत, पंजाब, कश्मीर, उड़ीसा, पश्चिम और दक्षिण भारत में इसका व्यापक प्रभाव नहीं था। दिल्ली को केंद्र बनाने से विद्रोह उतना अधिक नहीं फैल सका जितना फैल सकता था। फलतः विद्रोहों की अत्यधिक, स्थानबद्ध प्रकृति के कारण अँगरेज उनसे एक-एक कर निबटने में कामयाब रहे।

52. असहयोग आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं। वर्णन करें।
उत्तर:- : अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के विरोध में गांधीजी ने अगस्त 1920 ई. को असहयोग आन्दोलन प्रारंभ करने की घोषणा की। 1920 ई. के कलकत्ता के विशेष अधिवेशन तथा नागपुर अधिवेशन में गांधी जी की घोषणा का कांग्रेस ने समर्थन किया।
असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम:
A. उपाधियों और अवैतनिक पदों का बहिष्कार।
B. सरकारी सभाओं का बहिष्कार ।
C. स्वदेशी का प्रयोग।
D. सरकारी स्कूलों व कॉलेजों का परित्याग।
E वकीलों द्वारा सरकारी न्यायालय का परित्याग।
F. राष्ट्रीय न्यायालयों की स्थापना।
G. हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल ।
H. अस्पृश्यता की समाप्ति ।

  • गांधीजी तथा अन्य व्यक्तियों द्वारा उपाधियों के परित्याग से इस आंदोलन की शुरुआत हुई। कांग्रेस ने विधानमंडल के चुनाव का बहिष्कार किया। स्वदेशी शिक्षण संस्थान स्थापित किए गए जैसे काशी विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, जामिया मिलिया इस्लामिया आदि, विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई। चरखे का प्रचलन बढ़ा ‘तिलक स्वराज फंड’ की स्थापना हुई और शीघ्र ही इसमें करोड़ रुपये जमा हो गए। स्वशासन के स्थान पर स्वराज को अंतिम लक्ष्य घोषित किया गया।
  • आंदोलन के दौरान हिन्दू मुस्लिम एकता का भी प्रस्फुटन हुआ। असहयोग आंदोलन का प्रारंभ शहरी मध्यम वर्ग की हिस्सेदारी से प्रारंभ हुआ। विद्यार्थियों ने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिये, शिक्षकों ने त्यागपत्र दे दिया, वकीलों ने मुकदमे लड़ने बंद कर दिये तथा मद्रास के अतिरिक्त प्रायः सभी प्रांतों में परिषद् चुनावों का बहिष्कार किया गया। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया, शराब की दुकानों की पिकेटिंग की गयी। व्यापारियों ने विदेशी व्यापार में पैसा लगाने से इन्कार कर दिया। देश में खादी का प्रचलन और उत्पादन बढ़ा। सरकार ने इस आंदोलन को सख्ती से दबाया।
  • असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला 5 फरवरी 1922 को उत्तर प्रदेश की चोरीचौरा नामक स्थान में आंदोलनकारियों और पुलिस में झड़प हो गई जिसमें 22 पुलिस वाले मारे गए। इस घटना से गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया। अंततः 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन की समाप्ति कर दी गई।

असहयोग आंदोलन के प्रभाव :

(i) आंदोलन ने राष्ट्रीय भावना का विकास किया, अंग्रेजो के प्रति विरोध का वातावरण बनाया।
(ii) स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल में वृ‌द्धि हुई और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार हुआ।
(iii) देशी शिक्षण संस्थाओं का विकास हुआ।
(iv) कांग्रेसी पार्टी भी अपनी नीतियों एवं कार्यक्रमों में बदलाव किया।
(v) हिंदी को राष्ट्रभाषा का महत्त्व दिया गया तथा अंग्रेजी के प्रयोग में कमी आई।
(vi) खादी का प्रचलन प्रारंभ हुआ। चरखा राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक बन गया।
(vii) आंदोलन जनसाधारण तक पहुंची।
(viii) आंदोलन की असफलता ने कांतिकारी गतिविधियों को प्रेरणा दी।

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